शंकर सिंह वैद्य — आज़ादी के अमर सपूत

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शंकर सिंह वैद्य
✍️ जयप्रकाश रावत संदेश महल समाचार

आजादी के वीर सेनानी भले ही हमारे बीच नहीं हैं, पर उनके बलिदान और संघर्ष की गाथाएँ आज भी इतिहास के पन्नों पर जीवंत हैं। किसी कवि की यह पंक्तियाँ इन्हीं सपूतों पर सटीक बैठती हैं —

गाथा जिन पर लिखी शौर्य बलिदान की,
पृष्ठ इतिहास के वे अमर हो गए।
वक्त की गर्द में वे दफन न हुए,
बन के ज्वाला हृदय में धधकते रहे।”

शिलालेख में अमर नाम

भारत की आज़ादी की 50वीं स्वर्ण जयंती पर जनपद बाराबंकी के विकासखंड रामनगर परिसर में शहीदों की स्मृति में स्थापित शिलालेख पर छठे क्रम में अंकित नाम है शंकर सिंह वैद्य। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा लगाए गए कठोर कारावास, जुर्माना और नजरबंदी जैसी चुनौतियों का साहसपूर्वक सामना किया।

व्यक्तिगत सत्याग्रह और कठोर दंड

गणेशपुर के निवासी शंकर सिंह वैद्य, शोभा सिंह के पुत्र थे। उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेकर सन 1941 में भारत रक्षा कानून के अंतर्गत 18 माह कठोर कारावास और 200 रुपये जुर्माने की सज़ा भोगी। इसके बाद 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लेने के कारण 24 सितंबर 1942 से 2 फरवरी 1944 तक नजरबंदी में रहे।

किसान आंदोलन और कांग्रेस में सक्रिय भूमिका

शंकर सिंह वैद्य केवल स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि किसान आंदोलन के भी सक्रिय कार्यकर्ता थे। वे जिला कांग्रेस कमेटी के मंत्री और प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य भी रहे। उनके संघर्ष और नेतृत्व ने न केवल अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अविस्मरणीय योगदान दिया, बल्कि अवध क्षेत्र के किसानों और आम जनता को भी प्रेरित किया।

अवध की गौरवगाथा का हिस्सा

अवध की धरती ने अनेक वीर सपूत दिए, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। शंकर सिंह वैद्य उन्हीं में से एक थे। उनकी गाथा आज भी हमारे हृदय में ज्वाला बनकर धधकती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।