रिपोर्ट
प्रताप सिंह
मथुरा संदेश महल समाचार
प्रकृति, पर्यावरण एवं जल संरक्षण को लेकर सक्रिय बदायूं की शिप्रा पाठक अब ब्रज की कुंज गलियों में पर्यावरण संरक्षणच की अलख जगाने के लिए आ पहुंची हैं। इससे पहले वह पर्यावरण एवं जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 3600 किमी की पैदल यात्रा कर चुकी हैं। प्रकृति संरक्षण पर काम करने के लिए इन्हें मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। इनका उद्देश्य ब्रज की चौरासी कोस परिक्रमा लगाकर यहां की जनता को जल, पर्यावरण एवं प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता बरतने और इसके संरक्षण के लिए जागरूक करना है।
बदायूं के दातागंज से ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा लगाने के लिए ब्रज आईं शिप्रा पाठक ने बातचीत में बताया कि वह ब्रज की 84 कोस परिक्रमा लगाने के प्रति काफी उत्सुक हैं। ब्रज भूमि भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी शक्ति राधा रानी की लीला भूमि है। यह चैरासी कोस की परिधि में फैली हुई है। यहां पर राधा-कृष्ण ने अनेक चमत्कारिक लीलाएं की हैं। सभी लीलाएं यहां के पर्वतों, कुण्डों, वनों और यमुना तट आदि पर की गई। पुराणों में ब्रज भूमि की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है।
शरद पूर्णिमा को ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा आरंभ करने वाली शिप्रा पाठक को ब्रज से इतना लगाव है कि उन्हें ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा की काफी जानकारी है। उन्हों बताया कि इस पावन यात्रा में करीब 1300 गांव आते हैं। यात्रा मार्ग में 12 वन, 24 उपवन, चार कुंज, चार निकुंज, चार वनखंडी, चार ओखर, चार पोखर, 365 कुंड, चार सरोवर, दस कूप, चार बावरी ,चार तट, चार वट वृक्ष ,पांच पहाड़, चार झूला, 33 स्थल रासलीला के हैं। इस यात्रा में शामिल होने वालों को प्रतिदिन 36 नियमों का पालन करना होता है। मान्यता है कि 84 कोस की परिक्रमा पूरी करने से 84 लाख योनियों से मुक्ति प्राप्त होती है। इस यात्रा के हर कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। केदरनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन होते हैं तो गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन होते हैं। ऐसा माना गया है। कि ब्रज धाम की परिक्रमा सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा जी ने की थी। चैरासी कोस यात्रा मार्ग मथुरा ही नहीं, अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फरीदाबाद की सीमा तक में पड़ता है। लेकिन इसका अस्सी फीसदी हिस्सा श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में ही है।
शिप्रा पाठक ने बातचीत में बताया कि वह एक राजनीतिक परिवार से संबंध रखती हैं। उनकी दादी स्व. संतोष कुमारी पाठक दातागंज से कांग्रेस पार्टी से 4 बार विधायक रह चुकी है। उनके पिता डा. शैलेश पाठक एक जनसेवक हैं। वह खुद का बिजनेस संभालती है। उनकी एक ट्रांसपोर्ट कम्पनी है। इसके अलावा वह अपने भाई अंकित पाठक के साथ मिल कर आयुर्वेद को बढ़ावा देते हुए लेमन ग्रास, खस, श्यामा तुलसी की खेती भी करवाती है। इसके अलावा उनकी रुचि भारत की सभ्यता और संस्कृति में है। बताया कि वह पूर्व में मां नर्मदा की 3600 किमी की पैदल परिक्रमा कर चुकी हैं। जोकि नवंबर 2018 से शुरू होकर फरवरी 2019 को समाप्त हुई थी। उन्हें मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा सम्मानित भी किया गया था। वह भारत के लगभग सभी धर्म स्थलों की यात्रा कर चुकी है। वह लेखिका भी है। और नर्मदा के अनुभव पर एक किताब भी लिखी है। बताया कि उनको पर्यावरण प्रकृति और जल संरक्षण के बचाव के लिए कई जगह सम्मानित किया जा चुका है। हाल ही में उन्हें उतराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सम्मानित किया था।
उन्होंने बताया कि बांके बिहारीजी और ब्रज से उन्हें विशेष लगाव है। और इसके चलते उनका अक्सर वृंदावन आना लगा रहता है। कोरोना काल में परिक्रमा लगाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि कोरोना में जब सब कार्य नियमों का पालन करते हुए हो रहे है। तो धर्म के कार्य में व्यवधान क्यों हो रहा है। हम सदैव धर्म को लेकर इतने लापरवाह क्यों हो जाते हैं। धर्म एक आवश्यक धरातल है। जिसके ऊपर जीवन का ढांचा तैयार होता है। अतः कोई काल हो पूजा, प्रार्थना, साधना रुकनी नहीं चाहिए।शिप्रा ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा लगाने के लिए एक दिन में करीब 30 किमी पैदल चल रही हैं। उन्होंने बताया कि जल संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए वह स्वयं से जुड़े लोगों के साथ मिल कर वो घाट-घाट जाती हैं। वहां सफाई करवाती हैं। सबको जागरुक करती है। कि कोई जल स्रोतों में गंदगी नही डालेगा। उनका प्रकृति और पर्यावरण से इतना लगाव है। कि वो अक्सर उतराखंड के जंगलो में साधना को निकल जाती हैं। उन्होंने स्थानीय जनता से भी निवेदन किया कि जो भी ब्रज, गोवर्धन और वृंदावन परिक्रमा करने आए वो परिक्रमा करते समय ब्रज की सफाई का विशेष ध्यान रखे। जिस पवित्र ब्रज की तलाश में आए है। उसे वैसा ही बना कर भी रखे। उन्होंने सभी ब्रजवासियों को दीपावली की शुभकामनाएं देते हुए पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता बरतने का संदेश भी दिया।