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पण्डित बेअदब लखनवी ने शहीदों को नमन करने काकोरी फिर से आए हैं

रिपोर्ट
जेपी रावत
लखनऊ संदेश महल समाचार

काकोरी काण्ड के अमर बलिदानियों के बलिदान दिवस पर वीर रस कवि सम्मेलन व मुशायरा सम्पन्न

क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां,ठाकुर रौशन सिंह,राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी व पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत को यूँ ही नहीं भुलाया जा सकता है।खाली हाथ कोई जंग नहीं जीती जा सकती।अंग्रेजी हुकूमत को कांटे की टक्कर देने के लिए जरूरी था हथियारों से लैस होना और उसके लिए चाहिए पैसा।जी हां क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने के लिए पैसे कहाँ से आते।सो क्रांतिकारियों को जो रास्ता समझ में आया सो उन्होंने अपनाया और दे डाला ट्रेन डकैती को अंजाम।जो आगे चलकर काकोरी कांड के नाम से मशहूर हुआ।खोदा पहाड़ निकली चुहिया की कहावत सच साबित हुई।ट्रेन डकैती में मिली छोटी सी धनराशि मगर जिसकी वजह से मौत को गले लगाना पड़ा।क्रमशः 17 व 19 दिसम्बर,  1927 को इन चारों आजादी के परवानों को अलग अलग जेलों में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था।जिनकी कहानी सुनकर रगों में खून उबाल मारने लगता है ऐसे अमर सपूतों को नमन करते हुए काकोरी स्थित शहीद मंदिर में मार्तण्ड साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था के द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन व मुशायरे में कवियों व शायरों ने अमर बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने अपने कलाम पेश किया।

अध्यक्षता कर रहे डाॅ अजय प्रसून ने दर्द वाले गीत गाना छोड़ के,
फूल बन के खिल खिलाएंगे कभी पढ़कर वाहवाही लूटी।
तो पण्डित बेअदब लखनवी ने शहीदों को नमन करने काकोरी फिर से आए हैं,
समर्पित उनको हम करने श्रद्धा के पुष्प लाए हैं,
जरूरत जो पड़ी तो हम भी अपनी जां लुटा देंगे,
शमा जो खूं से थी रौशन उसे दिल में जलाए हैं ।पढ़ी तो मंच तालियां की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

वहीं कवि सुरेश कुमार राजवंशी ने–मैं महानदी औ सिंधु नदी हूं,ब्रह्मपुत्र का पानी हूं।मैं झलकारी,ऊदादेवी,मैं झांसी की रानी हूं। मैं राम प्रसाद बिस्मिल,मैं ही राजेंद्रनाथ लाहिड़ी हूं।मैं ही वीरा,मैं ही अजीजन,मैं ही सुचेता कृपलानी हूं।
आसिम काकोरवी ने–जो करता है तो कट जाए सरे बाकार सर अपना फिर अपने तिरंगे को कभी झुकने नही देखें। सुना कर खूब तालियां बटोरी।
मेहंदी हसन खान फहमी ने–चमन अच्छे न गुन्चा हों खुबसूरत,नजर अच्छी हो तो सेहरा खूबसूरत।सुना कर मंत्रमुग्ध कर दिया।
पं.बेअदब लखनवी ने–शहीदों को नमन करने काकोरी फिर से आये हैं,समर्पित उनको हम करने श्रद्धां के पुष्प लाये हैं। सुना कर मंत्रमुग्ध कर दिया।
एस.पी.रावत ने–9अगस्त 1925 की ऐतिहासिक कहानी है। आजादी के दीवानों की अमर एक कहानी है। सुना कर खूब वाहवाही बटोरी।
अशोक विश्वकर्मा ने–जिन्दगी से मोहब्बत करने लगा हूं। सुना कर खूब तालियां बटोरी।
पं. विजय लक्ष्मी मिश्रा ने — काकोरी के शहीदों को नमन मैं करने आयी हूं,
चढ़ाने कदमों में उनके श्रद्धां के पुष्प लायी हूं। सुना कर मंत्रमुग्ध कर दिया।
प्रेम शंकर शास्त्री’बेताब’ ने शहीदों की शहादत को भुलाया जा नहीं सकता है। सुना कर खूब वाहवाही बटोरी।जिया लाल भारती ने–जमाने से तुम नही जमाना है प्रताप से। सुना कर खूब तालियां बटोरी।
कार्य क्रम के अंत में संस्था के अध्यक्ष आदरणीय सरस्वती प्रसाद रावत द्वारा धन्यवाद ज्ञापित करने के साथ श्रद्धांजलि समारोह का समापन किया गया।