चंद्र दर्शन के बाद ही क्यों पूरा होता- करवा चौथ

जयप्रकाश रावत संदेश महल

भारतीय संस्कृति में हर व्रत और त्योहार के पीछे कोई न कोई गहरा आध्यात्मिक संदेश छिपा होता है। करवा चौथ का व्रत भी केवल एक रीति-रिवाज नहीं, बल्कि पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और आस्था का उत्सव है। इस दिन विवाहित महिलाएं पूरे दिन निर्जल उपवास रखती हैं और जब तक चंद्रमा का दर्शन नहीं होता, तब तक व्रत अधूरा माना जाता है।

लेकिन आखिर ऐसा क्यों है कि चंद्र दर्शन के बिना करवा चौथ का व्रत पूर्ण नहीं होता?

धार्मिक मान्यता

हिंदू धर्मग्रंथों में चंद्रमा को शीतलता, स्थिरता, सौंदर्य और दीर्घायु का प्रतीक बताया गया है। चंद्रदेव मन और भावना के देवता माने जाते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा विराजमान हैं और वे जीवन में संतुलन और शांति का संचार करते हैं।

जब महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखती हैं, तो वे दिनभर तप, संयम और श्रद्धा का पालन करती हैं। चंद्रमा का उदय उनके इस तप का पूर्णता क्षण माना जाता है।
इसी कारण चंद्र दर्शन के बाद व्रत का समापन किया जाता है, ताकि पति की आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए किया गया यह व्रत देवताओं की कृपा से सफल हो।

पौराणिक कारण

करवा चौथ की कथा से भी इसका संबंध स्पष्ट होता है। कथा में उल्लेख है कि जब साहूकार की सबसे छोटी बेटी ने अपने भाई के छल में आकर बिना चंद्र दर्शन किए व्रत तोड़ दिया था, तो उसके पति की मृत्यु हो गई। बाद में देवी पार्वती ने उसे समझाया कि —

“व्रत तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक चंद्रदेव के दर्शन न किए जाएं, क्योंकि चंद्र ही दीर्घायु के दाता हैं।”

इस कथा के अनुसार, चंद्रमा का दर्शन करके व्रत तोड़ने से देवी पार्वती और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे पति का जीवन सुरक्षित और दीर्घ होता है।

चंद्रमा और छलनी का प्रतीकात्मक अर्थ

करवा चौथ की सबसे पवित्र रस्म होती है — छलनी से चंद्र और फिर पति का चेहरा देखना।
छलनी में बने छोटे-छोटे छेद जीवन की कठिनाइयों और परिस्थितियों का प्रतीक हैं, जबकि छलनी से झांकता हुआ चांद यह दर्शाता है कि प्रेम और विश्वास के प्रकाश में हर अंधकार मिट जाता है।
जब महिला उसी छलनी से अपने पति को देखती है, तो यह केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि यह संदेश है कि उसके जीवन का केंद्र प्रेम, विश्वास और समर्पण है।

आध्यात्मिक दृष्टि से

आध्यात्मिक रूप से चंद्रमा मन का प्रतीक है।
चंद्र की शीतलता यह सिखाती है कि वैवाहिक जीवन में शांति, धैर्य और कोमलता का होना आवश्यक है।
पूरे दिन व्रत रखने के बाद जब महिला चंद्रमा के उदय की प्रतीक्षा करती है, तो यह प्रतीक्षा उसकी आत्मा की परीक्षा है — धैर्य, विश्वास और प्रेम की पराकाष्ठा।
इसलिए जब चंद्रमा आकाश में उदित होता है, तो वह उस तपस्या का फल है जो दिनभर की साधना में समाहित होती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

यदि इसे वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए, तो चंद्रमा पृथ्वी पर जल और ज्वार-भाटा के साथ-साथ मानव शरीर के तरल तत्त्वों पर भी प्रभाव डालता है।
इसलिए कहा जाता है कि चंद्रमा की किरणों में प्राकृतिक ऊर्जा और शीतलता होती है।
चंद्रमा के दर्शन के बाद जल ग्रहण करना शरीर को शांति और ऊर्जा प्रदान करता है। इसीलिए व्रत तोड़ने के लिए चंद्र दर्शन का इंतज़ार करना केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाभकारी है।
करवा चौथ का व्रत तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक चंद्रमा का दर्शन न किया जाए, क्योंकि चंद्रमा ही उस तपस्या, श्रद्धा और प्रेम का साक्षी होता है जो नारी अपने पति के लिए रखती है।
चंद्र दर्शन का अर्थ है — आस्था की पूर्णता, प्रेम की स्थिरता और जीवन में शांति की प्राप्ति।