शिक्षक बेल्ट कांड – की गूंज और रिहाई का सन्नाटा

✍️ — जयप्रकाश रावत

सीतापुर का “शिक्षक बेल्ट कांड” बीते कुछ हफ्तों से न केवल जनपद बल्कि पूरे प्रदेश के शैक्षिक गलियारों में सुर्खियों में रहा। एक कथित वीडियो, जिसमें बेल्ट से अनुशासन दिखाने की कोशिश ने प्रशासनिक अनुशासन को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। इस पूरे प्रकरण में गिरफ्तार हुए प्रधानाध्यापक बृजेंद्र वर्मा की रिहाई ने अब इस विवाद को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है।

घटना से गिरफ्तारी तक

23 सितंबर को जब “शिक्षक बेल्ट कांड” का वीडियो वायरल हुआ, तो शिक्षा विभाग और प्रशासनिक तंत्र पर एकाएक उंगलियां उठीं। अनुशासन और गरिमा के नाम पर शिक्षक समुदाय को सामूहिक आलोचना का सामना करना पड़ा।
इसी क्रम में पुलिस ने शिक्षक बृजेंद्र वर्मा को हिरासत में लेकर जेल भेज दिया। लोअर कोर्ट से राहत न मिलने पर मामला सेशन कोर्ट पहुंचा, जहां से आखिरकार सोमवार को जमानत मंजूर हुई और गुरुवार को उनकी रिहाई हुई।

गुप्त रिहाई — प्रशासन की सावधानी या संकोच?

जेल प्रशासन ने रिहाई की प्रक्रिया को पूरी तरह गोपनीय रखा। न मीडिया को सूचना दी गई, न परिवार को। तड़के सुबह चुपचाप बस से लखनऊ रवाना कर दिया गया।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर ऐसी गोपनीयता की जरूरत क्यों पड़ी?
क्या प्रशासन इस मामले की संवेदनशीलता से डर रहा था, या फिर यह एक सुनियोजित कोशिश थी कि भीड़, कैमरे और सवाल जेल गेट पर जमा न हों?

शिक्षक समाज की सांसें

इस मामले ने प्रदेश के शिक्षकों के बीच असुरक्षा की भावना को जन्म दिया। एक वीडियो ने पूरे शिक्षक वर्ग की नीयत, अनुशासन और छवि को कठघरे में डाल दिया।
अब जब बृजेंद्र वर्मा रिहा हुए हैं, तो शिक्षक समुदाय में एक राहत की लहर देखी जा रही है — लेकिन राहत के साथ विश्वास की दरारें भी गहरी हैं। यह सवाल आज भी गूंज रहा है — क्या जांच और न्याय की प्रक्रिया में समानता है, या परिस्थितियां ही फैसला करती हैं?

प्रशासन की चुप्पी और जनमानस की बेचैनी

शिक्षा विभाग ने इस पूरे प्रकरण पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया। संभवतः विभाग यह मानकर चल रहा है कि मौन ही विवाद से बचने का मार्ग है।
पर सच यह है कि जनता का विश्वास “चुप्पी” से नहीं, स्पष्टता और पारदर्शिता से बनता है। जब एक शिक्षक जेल जाता है और रिहा होता है, तो यह केवल एक व्यक्ति का मामला नहीं रह जाता — यह पूरी शिक्षा व्यवस्था की नैतिकता और विश्वसनीयता से जुड़ जाता है।

आख़िर में…

बृजेंद्र वर्मा की रिहाई न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है, पर “शिक्षक बेल्ट कांड” की गूंज अभी थमी नहीं है।
यह घटना हमें यह सोचने को विवश करती है कि क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन का मतलब डर है, या दिशा देने की शक्ति?
क्या एक वायरल वीडियो सच्चाई का पर्याय बन सकता है, या फिर सच्चाई अब भी जांच की टेबल पर अधूरी पड़ी है?

इस प्रकरण ने समाज को एक दर्पण दिया है — जिसमें शिक्षा, प्रशासन, मीडिया और जनभावनाएं एक साथ दिखाई देती हैं। अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में इस दर्पण में सच्चाई झलकेगी या केवल प्रतिबिंब रहेगा।