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राम नाम के दो अक्षर नें,कितनों का बेड़ा पार किया

बाराबंकी संदेश महल ब्यूरो रिपोर्ट जेपी रावत के

बाराबंकी संदेश महल समाचार।
अधिशाषी अभियंता विद्युत विभाग में कार्यरत हर्षित श्रीवास्तव की ‘मर्यादित राम’ पुस्तक प्रकाशित हुई हैं।राम के चरित्र और कथा के देशी-विदेशी विविध रूपों के विवरणों का आज महज ऐतिहासिक या साहित्यिक महत्त्व ही है। कम से कम उत्तर भारत की सवर्ण और मध्यवर्ती जातियों की आबादी की भक्ति-भावना का आधार तुलसी के राम हैं,जिन्हें उन्होंने राजा दशरथ के राजकुमार पुत्र से ऊपर उठा कर,पूरे चरित सहित भक्ति और प्रेम की भावना में सराबोर कर दिया।‘मानस’ में रावण भी सीता का हरण बदले या काम-वासना से प्रेरित होकर नहीं,मोक्ष पाने के उद्देश्य से करता है और राम के हाथों मारा जाकर सायुज्य मुक्ति प्राप्त कर लेता है।तुलसी के इस उद्यम का उनकी जीवन-दृष्टि के संदर्भ में अध्ययन होना अभी बाकी है।इसी कड़ी में जुड़कर सरकारी नौकरी करते हुए भी लेखन कार्य करने वाले विजली बिभाग के अधिशाषी अभियंता की “मर्यादित राम” पुस्तक प्रकाशित हो गई।जो अमेजान पर भी उपलब्ध है।इस पुस्तक में राम चरित मानस के उन प्रसंगों को छंदों में काव्यमय किया गया है जो आज भी प्रेरणा दे रहे हैं।रामनगर डिवीजन में अधिशाषी अभियंता विद्युत हर्षित श्रीवास्तव ज्ञान रुपी अम्रत के समान चौपाइयों और छंदों से सुसज्जित श्री राम चरित मानस ग्रँथ के भगवान राम के चरित्र व उनके क्रियाकलापों से बहुत प्रभावित हैं।आज की नवपीढी को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के चरित्र के विषय पर प्रकाश डालते हुए मर्यादित राम पुस्तक काव्य को प्रकाशित कर नवपीढी को सीख लेने की प्रेरणा दी है।उन्होंने भी रामचरित मानस सैकड़ों बार पढी है।बिजली विभाग जैसे व्यस्त बिभाग में एग्जेक्यूटिव इंजीनियर के पद पर रह कर लेखन का कार्य कर पुस्तक प्रकाशित करने वाले श्री श्रीवास्तव ने अन्य लोगों को यह प्रेरणा दी है कि लेखन की रुचि में नौकरी बाधा नही है।नौकरी करते हुए भी पठन पाठन,लेखन किया जा सकता है।रात में अधिकतर काव्य लिखकर फिर उसे पुस्तक का रूप देने में उन्हें एक वर्ष लग गए।पुस्तक में जंहा उन्होंने रामचरित मानस से ही प्रसंगो और तर्कों को लेकर शम्भूक बध का खंडन किया है तो अहिल्या उद्धार का बेबाकी से जिक्र है।भगवान राम ने जिस प्रकार अहिल्या को समाज में वापसी कराई उस पर अहिल्या के भाव भरे कृतज्ञता के शब्द को कबिता में पिरोते लिखा है कि राम नाम के दो अक्षर नें कितनों का बेड़ा पार किया,हाँ कौशिल्या के जाए बेटे,तुमने मेरा उद्धार किया।राम तुम्हारी सोंच अगर यह दुनिया अपनाएगी,फिर कोई अभागिन अहिल्या,कभी न त्यागी जाएगी।पोइट्री वर्ड आर्गनाइजेशन नें इसे प्रकाशित किया है।मूल रूप से सुल्तानपुर के कुड़वार के निवासी बीटेक डिग्री धारक श्री श्रीवास्तव बचपन में दादी और छोटे भाई से रामचरित मानस की चौपाइयां सुना करते थे। दादी पढ़ी लिखी नही थी पर पूरी रामचरित मानस कंठस्थ थी।बचपन से ही लेखन का शौक रहा जो नौकरी में भी चलता रहा।वे कहते हैं कि रामचरित मानस हिंदुओं का ऐसा महान ग्रँथ है जो जितनी बार पढ़ा जाय उतने अर्थ देगा।रामचरितमानस वर्तमान युग के लिए संजीवनी हैं।