जेपी रावत
सीतापुर संदेश महल
कहते हैं—भारत गांवों का देश है, और गांवों में अब भी कई कहानियाँ हैं जो विज्ञान से ज़्यादा विश्वास पर टिकती हैं। ऐसी ही एक चौंकाने वाली कहानी सामने आई उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले से, जहाँ एक पति ने अपनी पत्नी पर “रात में नागिन बनने” का आरोप लगाकर जिला प्रशासन तक गुहार लगा दी।

जब शिकायत का विषय सुन अधिकारी भी रह गए हैरान
महमूदाबाद तहसील में आयोजित समाधान दिवस में जब लोधासा गांव के निवासी मेराज नामक व्यक्ति अपनी शिकायत लेकर पहुँचे, तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह मामला गंभीर से ज़्यादा अजीबोगरीब होने वाला है।
मेराज ने जिलाधिकारी अभिषेक के सामने बाकायदा प्रार्थना पत्र देकर कहा —

साहब, मेरी पत्नी रात को नागिन बन जाती है। फुफकारती है, मुझे डराती है, और मैं रातभर सो नहीं पाता।
शिकायत सुनकर अधिकारी कुछ पल के लिए चुप रहे, फिर उन्होंने पूछा —क्या आपने डॉक्टर को दिखाया?
मेराज का जवाब था — “डॉक्टर क्या करें साहब, वो तो नागिन है…
हॉल में बैठे लोग मुस्कुराए बिना नहीं रह सके, लेकिन प्रशासन ने इसे हल्के में नहीं लिया।
पत्नी के व्यवहार पर पति का डर
मेराज के मुताबिक उसकी पत्नी नसीमुन पिछले कुछ महीनों से अजीब हरकतें करने लगी है। रात को अचानक जागकर अजीब आवाज़ें निकालती है, ज़मीन पर लोटती है, और कहती है कि उसके अंदर नागिन का रूप है। पति का कहना है कि इससे वह बुरी तरह डर चुका है और कई रातों से ठीक से सो भी नहीं पाया।
पुलिस ने पहले इस शिकायत को ‘मज़ाक’ समझा, लेकिन अब जिलाधिकारी के निर्देश पर कोतवाली पुलिस को मामले की जांच करने का आदेश दिया गया है।

ग्रामीणों में चर्चा, सोशल मीडिया पर मज़ाक
जैसे ही यह खबर बाहर आई, महमूदाबाद से लेकर सीतापुर तक चर्चा का विषय बन गई। गांवों में लोग तरह-तरह की बातें करने लगे—
“नागिन वाली बहू के चर्चे हैं”, “मेराज को नागिन ने डराया”…
सोशल मीडिया पर भी लोग इस मामले को “सीतापुर की नागिन कहानी” कहकर शेयर कर रहे हैं।पर असली सवाल कुछ और है…
क्या यह घटना वाकई किसी रहस्यमय शक्ति का असर है, या फिर एक मानसिक बीमारी का संकेत?
मनोचिकित्सकों के अनुसार, कई बार तनाव, भय, या अवसाद व्यक्ति के व्यवहार में इस तरह के बदलाव ला सकते हैं। भारत के ग्रामीण इलाकों में, जहां मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता कम है, वहां ऐसे मामलों को तुरंत “भूत-प्रेत” या “नागिन” जैसी मान्यताओं से जोड़ दिया जाता है।
समाज को क्या सीख लेनी चाहिए?

यह घटना सिर्फ़ हंसी का विषय नहीं, बल्कि सोचने का भी है।
क्यों अब भी गाँवों में काउंसलिंग और चिकित्सा की जगह अंधविश्वास पर भरोसा किया जाता है?
क्यों लोग डर और धारणा में जीना ज़्यादा सहज समझते हैं, जबकि इलाज और समझ से समाधान निकाला जा सकता है?
जिलाधिकारी अभिषेक ने मामले की जांच का आदेश तो दे दिया है, लेकिन असली काम समाज के सोचने के तरीके को बदलना है।