
जयप्रकाश रावत – संदेश महल
दीपावली के प्रकाश से भरा वातावरण, मिठास से सनी हवाएँ और आँगन में जगमगाते दीप…
इन्हीं सबके बीच आता है एक ऐसा दिन, जो केवल रोशनी का नहीं, बल्कि रिश्तों की आत्मा का उत्सव है — यम द्वितीया, जिसे हम प्रेम से भैया दूज कहते हैं।
यह दिन उस कहानी का स्मरण है, जहाँ प्रेम ने कर्तव्य पर विजय पाई, और मृत्यु भी स्नेह के आगे झुक गई।
पौराणिक कथा कहती है कि सूर्यदेव की संतान यमराज और यमुना वर्षों से एक-दूसरे से दूर थे। यमुना हर बार अपने भाई को बुलातीं, पर यमराज अपने कर्मों में इतने बंधे थे कि आ नहीं पाते थे।
आख़िर एक दिन, कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन के घर पहुँचे। यमुना ने उनके स्वागत में दीप जलाए, तिलक लगाया और स्नेह से भोजन कराया। उस क्षण यमराज के भीतर का देवता नहीं, बल्कि भाई जाग उठा। उन्होंने कहा —
जो इस दिन अपनी बहन के घर आएगा और स्नेहपूर्वक तिलक करवाएगा, उसे यमलोक का भय नहीं रहेगा।
इस वचन ने एक परंपरा को जन्म दिया —
जिसे हम आज यम द्वितीया के नाम से मनाते हैं।
रिश्तों की गरिमा का उत्सव
यम द्वितीया हमें सिखाती है कि रिश्ते केवल रक्त से नहीं, बल्कि भावना से जीवित रहते हैं।
बहन का तिलक केवल एक रिवाज़ नहीं, बल्कि रक्षा, विश्वास और आत्मीयता का व्रत है।
भाई जब बहन के घर जाता है, तो वह केवल मिठाई नहीं खाता — वह उस प्रेम का स्वाद चखता है जो शब्दों से परे है।
आज के युग में जब संवाद मोबाइल स्क्रीन तक सीमित हो गया है, जब परिवार एक ही छत के नीचे रहकर भी दूरियों में जी रहे हैं, तब यम द्वितीया हमें फिर से मिलने, महसूस करने और एक-दूसरे को अपनाने की याद दिलाती है।
समाज के लिए संदेश
यह पर्व केवल भाई-बहन का नहीं, बल्कि मानवता का पर्व है।
यह सिखाता है कि प्रेम, संवेदना और करुणा यही जीवन के सबसे बड़े धर्म हैं।
अगर यमराज जैसे कठोर देवता भी स्नेह से पिघल सकते हैं,
तो हम मनुष्य क्यों नहीं थोड़ा और नम्र, और संवेदनशील बन सकते?
यम द्वितीया का दीपक यही कहता है —
“रिश्तों में समय दो, उनमें विश्वास जलाओ;
क्योंकि जब प्रेम सच्चा होता है, तो मृत्यु भी हार जाती है।
यम द्वितीया हमें यह सिखाती है कि दीपावली केवल घरों को नहीं, दिलों को भी रोशन करने का पर्व है।
यह वह क्षण है जब बहन की आरती में दुआएँ झिलमिलाती हैं और भाई के माथे पर जीवन का आशीर्वाद उतर आता है।
इसलिए हर दीपावली के बाद जब आप यम द्वितीया का तिलक लगाएँ,
तो यह याद रखिए —
यह परंपरा केवल संस्कार नहीं, बल्कि स्नेह का वह अमर सूत्र है,
जो युगों से जीवन को अमर बना रहा है।